Tuesday, August 19, 2014

Meghwal Samaj and Dr. Ambedkar - मेघवाल समाज और डॉ आंबेडकर

(This post is contributed by Sh. Tararam)

1.

परम पूज्य बाबा साहेब डॉ आंबेडकर ने शोषितोंदलितोंवंचितोंश्रमिकों और महिलाओं के उत्थान हेतु अनथक प्रयत्न किये। उनके इस आन्दोलन में सम्पूर्ण भारत में 'मेघवाल समाजने एकजुट होकर उनके मार्ग-निर्देशों का पालन किया। बाबा साहेब डॉ आंबेडकर से मेघवाल समाज की दुर्दशा छुपी हुई नहीं थी। कई लोग उन्हें पत्र भेजकरकई लोग उनसे मिलकर एवं कई लोग सभा-सम्मलेन करके मेघवाल समाज की समस्याएँ बाबा साहेब के सामने रखते थे। बाबा साहेब जब 'बहिष्कृत भारतपत्र का प्रकाशन करते थेतो उनके सामने इस समाज ने अपनी तकलीफें बयान की और मार्गदर्शन माँगा। 'बहिष्कृत भारतके नवम्बर 1927 के अंक में बाबा साहेब ने इस समाज को जागृत करते हुए बताया कि जुल्मों से छुटकारा पाने के लिए और समाज में अपना ओहदा बढाने के लिए हमें मनन-चिंतन करना चाहिए व उस रास्ते पर चलना चाहिएजिस पर चलने से हमें अमन-चैन मिले।

'बहिष्कृत भारतके नवम्बर 1927 के अंक में मेघवाल समाज पर बाबा साहेब ने जो लिखावह महाराष्ट्र सरकारबम्बई द्वारा प्रकाशित "बाबा साहेब डॉअम्बेडकर राईटिंग्स एंड स्पीचेसके वॉल्यूम 19 के पृष्ठ 298-299 पर मूलपाठ मराठी भाषा में उपलब्ध हैजिसका अविरल हिंदी अनुवाद पाठकों की जानकारी हेतु दिया जा रहा है-

"मध्य भारत और राजपुतानें में मेघवाल नाम का एक 'अस्पृश्य वर्गपीतल के दागीणे (गहनेंवापरता (पहनतारहा है। इनमें जिनकी माली हालात ठीक हैजो अपेक्षाकृत सुखद स्थिति में रहने वाले हैंउनको पीतल के गहने पहनने में लज्जा अनुभव होती है। यह सहज-स्वाभाविक है कि अपनी हैसियत के अनुसार पोशाक और रहन-सहन हो। इस नियम से मेघवाल समाज ने चांदी के गहने पहनना शुरू किया। खरोखरी या सच बात तो यह है कि सोने के गहनों की जगह चाँदी के गहने पहनने पर भी इस समाज को क्या मिला? - इनको स्थानीय सवर्ण हिन्दुओं की प्रताड़ना (संतापझेलनी पड़ी अर्थात वे सवर्णों द्वारा सताये जाने लगे। मेघवाल समाज द्वारा चांदी के आभूषण पहनना हिन्दुओं को अखरने लगा और हिन्दू इसे अपना अपमान समझने लगे। इससे उन्होंने (हिन्दुओं नेमेघवाल जाति से छल करना शुरू कर दिया। इस अंक की दूसरी कड़ी में वल्हाड़ प्रान्त के दो गृहस्थियों के पत्र प्रकाशित हुए हैंजिससे उनकी करुण-कहानी स्वतः स्पष्ट होती है। जिन अस्पृश्यों को विपन्न स्थिति में (त्राहि-त्राहि करनेछोड़ दिया थावह समाज ठीक (स्वच्छता सेरहता है तो हिन्दुओं को उनका ऐसा रहना व करना अपराध लगता है अर्थात सवर्ण हिन्दुओं को यह सुहाता नहीं हैउन्हें सुभीता नहीं लगता है। हर एक वर्ण का कैसा रहन-सहन होना चाहिएउसके बारे में मनु ने 'मनु स्मृतिमें कई विधान (निर्बंधकिये हैं। ये विधान (कायदेनिर्बंधइतने अमानवीय हैं कि उन्हें तो वहीं दफ़न रहना (फक्त दफतरीचचाहिएऐसी मानस प्रवृति है। ऐसे उदाहरणों से लगता है कि इन नियमों की सख्ती से पालना होती थी। अगर ऐसा नहीं होता तो आजकल इस प्रकार के वाकयात नहीं होते। अंग्रेजों के आने से भी इनमें कोई परिवर्तन/बदलाहट नहीं हुई। सर्वसाधारण भी यह बात समझता है कि अंग्रेजों के द्वारा बनाये गये दंड-विधान (penal code) से भी अपराध के दंड विधान के अलावा कोई परिवर्तन नहीं हो सका। परन्तुदंड विधान के होते हुए भी स्पृश्य (सवर्णहिन्दू अस्पृश्यों को कैसे छलते हैंवह इन उदाहरणों से स्पष्ट होता है।"

"सारी अस्पृश्य जनता के सामने यह बहुत बड़ा प्रश्न है कि इन बेगुनाह अछूतों को जुल्मों से छुटकारा कैसे मिलेइन जुल्मों से छुटकारा दिलाने में सरकार की कोई मदद मिलेगीऐसा मुझे लगता नहीं है। हालाँकि सरकार (अंग्रेज सरकारहिन्दुओं के ताबे (वश-वर्चस्वमें नहीं हैफिर भी अंग्रेज सरकार उनकी परस्ती से ही चलती है। अगर ऐसा नहीं होता तो अस्पृश्यों को जागरूक करने के अपराध के कारण राआठवले को पुलिस द्वारा जान से मारा नहीं जाता। सवर्ण हिन्दू समाज अस्पृश्यों को सुख और चैन से रहने नहीं देता हैइससे तो अच्छा है कि वे दूसरे धर्म का अवलम्बन कर लें। अस्पृश्यों को सवर्ण लोग कांकन (सीमा पर या क्षण भरपर भी देखना नहीं चाहते हैं। अर्थात थोड़ी देर के लिए भी बर्दाश्त नहीं करना चाहते हैं। वे (हिन्दूउन्हें इत्मिनान से रहने नहीं देते हैं। इसका कारण यही है कि अस्पृश्यों का हिन्दू धर्म में कोई वजूद (दर्जानहीं है। अस्पृश्यों को अपना दर्जा बढाने के लिए सवर्णों से प्रमाण लेने के लिए जाने की जरुरत नहीं है। ऐसा धर्म छोड़ने (धर्मान्तरण करनेके अलावा अस्पृश्यों को अपना दर्जा बढ़ाने का कोई दूसरा मार्ग नहीं है। वल्हाड़ के राभीमसेन और रासूर्यभान ने अपने मन में जो धर्मान्तरण करने का विचार किया हैउससे अलग मैं आपको दूसरी सलाह क्या दूँ।"

(सन्दर्भआजकालचे प्रश्नबहिष्कृत भारततारीख:04 नवम्बर, 1927)




Monday, August 4, 2014

Books written by Dr. Ambedkar - डॉ. अंबेडकर द्वारा लिखित पुस्तकें

अम्बेडकर की लिखी कुछ किताबों का नाम दे रहा हूँ

Administration and finance of the east india company
Ancient Indian Commerce
Annihilation Of Caste
Buddha Or Karl Marx
Buddha And His Dhamma
Castes In India
Commercial Relations of India in the Middle Ages
Communal Deadlock And a Way to Solve it
Essays on Untouchables and Untouchability 1
Essays on Untouchables and Untouchability 2
Essays on Untouchables and Untouchability 3
Evidence Brfore The Royal Comission On Indian Currency And Finance
Federation versus Freedom
Frustration
India and The Pre-requisites of Communism
India on the eve of the crown government
Lectures on the English Constitution
Maharashtra as a Linguistic Province
Manu and the Shudras
Mr. Russell And The Reconstruction of Society
Mr. Gandhi And The Emancipation Of The Untouchables
Need for Checks and Balances
Notes on Acts and Laws
Notes on History of India
Notes on Parliamentary Procedure
Pakistan or the Partition of India
Paramountcy and the claim of the Indian states to be independent
Philosophy of Hinduism
Plea to the Foreigner
Preservation of Social Order
Ranade Gandhi&Jinnah
Review : Currency&Exchange
Review : Report of the Taxation Inquiry Committee
Revolution and Counter-Revolut ion in Ancient India
Riddle in Hinduism
Small Holdings in India and their Remedies
Statement of Evidence to the Royal Commission on Indian Currency
States and Minorities
The Constitution of British India
The Evolution of Provincial Finance in British India
The Present Problem in Indian Currency
The Present Problem in Indian Currency 2
The Problem of Political Suppression
The Problem of the Rupee
The Untouchables and the Pax Britannica
The Untouchables Who were they and why they became Untouchables
Thoughts on Linguistic States
Untouchables or the Children of India
Waiting for a Visa
What Congress and Gandhi have done to the Untouchables
Which is Worse?
Who were the Shudras?

(डॉ. सुनील अहीर के साभार)